प्राचीन मंगल पर कैसा रहा होगा जीवन और किस तरह बहती थी नदियां-झीलें? वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

 


मंगल ग्रह (Mars) को लेकर हर दिन कोई न कोई खुलासा हो रहा है, जिससे इसके इंसान का ‘दूसरा घर’ बनने की संभावना बढ़ती जा रही है. इसी कड़ी में एक नई स्टडी में कहा गया है कि मंगल के शुरुआती इतिहास में इस पर बर्फीले बादलों की एक पतली परत रही होगी, जिसने ग्रीनहाउस (Greenhouse) प्रभाव पैदा किया होगा. इससे ग्रह पर पर्याप्त गर्म तापमान रहा होगा, जो पानी के बहने के लिए अनुकूल होगा. अगर ऐसा रहा रहा है, तो इससे मंगल पर प्राचीन नदियों और झरनों की मौजूदगी की बात अधिक पुख्ता हो जाती है. (Life on Mars)

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के परसिवरेंस रोवर (Perseverance Rover) ने एक तस्वीर साझा की है. इसमें देखा जा सकता है कि मंगल ग्रह पूरी तरह धूल से भरा हुआ है, जहां जीवन के कोई सबूत नजर नहीं आ रहे हैं. लेकिन रोवर एक ऐसे इलाके में खोजबीन कर रहा है, जो कभी नदी का डेल्टा रहा होगा और ये बहते हुए पानी की वजह से बना होगा. जिस समय मंगल ग्रह पर नदियों और झीलों की मौजूदगी थी, उस समय आज के मुकाबले सूर्य कम रोशनी वाला रहा होगा. वर्तमान में हमें पृथ्वी पर जितनी सूर्य की रोशनी मिलती है, उसका एक तिहाई ही उस समय मंगल को मिलता था.

किसी को नहीं मालूम मंगल पर कैसे खत्म हुई नदियां

कई रोवर मिशनों से मंगल पर 3.7 अरब साल पहले बहने वाले पानी के व्यापक सबूत मिले हैं. लेकिन इसके बावजूद भी लोगों को इस बात की जानकारी बहुत कम है कि मंगल ने समय के साथ कैसे अपना पानी खो दिया. इस नई स्टडी को यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के नेतृत्व में किया गया है. इसमें माना गया है कि मंगल पर बर्फीले, उच्च ऊंचाई वाले बादलों की एक पतली परत रही होगी, जो ग्रीनहाउस प्रभाव का कारण बनी होगी.

3डी कंप्यूटर मॉडल से हुआ खुलासा- तीन अरब साल पहले मौजूद थे बादल

परसिवरेंस रोवर अपने मिशन के दौरान डेल्टा के किनारे मौजूद पत्थरों को ड्रिल करेगा और इसके भीतर मौजूद सूक्ष्मजीवों की तलाश करेगा. माना जा रहा है कि मंगल ही एकमात्र ऐसा एलियन ग्रह है, जहां सूक्ष्मजीवियों की मौजूदगी हो सकती है. मंगल के वातावरण का 3डी कंप्यूटर मॉडल से खुलासा हुआ है कि करीब तीन अरब साल पहले ग्रह पर उच्च ऊंचाई वाले बादल मौजूद रहे होंगे. ये बादल तब बनते हैं, पानी की बूंदों के भाप बनने से पहले ही शून्य के नीचे का तापमान उनको जमा देता है.

पानी के गायब होने को लेकर तरह-तरह की थ्योरी

मंगल ग्रह को ‘दूसरा नीला ग्रह’ भी कहा जाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये एक समय बिल्कुल पृथ्वी की तरह दिखाई देता था. हालांकि, मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी वाली थ्योरी कभी पूरी तरह साबित नहीं हो पाई है. एक थ्योरी बताती है कि एक बड़े उल्कापिंड ने मंगल ग्रह को टक्कर मार दी. इससे काइनैटिक एनर्जी निकलने लगी जिसने ग्रह को गर्म कर दिया और पानी को गायब होने दिया. हालांकि, अनुमान लगाने पर पता चलता है कि ऐसा सिर्फ दो सालों तक ही हो सकता है. विभिन्न NASA रोवर्स और सैटेलाइटों द्वारा देखी गई तस्वीरों से पता चलता है कि मंगल पर नदियों और झीलों के रूप में सैकड़ों सालों तक पानी मौजूद रहा है.


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