कोरोना के कहर के बीच आसमान से धरती की ओर तेजी से बढ़ रही ये आफत, नासा गड़ाए है नजर

 वॉशिंगटन: भारत ही नहीं दुनिया भर में कोरोना एक बार फिर भयावह होता जा रहा है। इसी बीच आसमान से धरती की ओर एक बड़ी आफत तेजी से बढ़ रही है। जिस पर नासा के वैज्ञानिक बराबर नजर गड़ाए हुए हैं। धरती की ओर तेजी से बढ़ रही ये आफत एक विशालकाय ऐस्‍टरॉइड यानी उल्‍कापिंड है। जिसका आकार फुटबाल के मैदान से भी बड़ा है।


9 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से धरती की ओर बढ़ रहा ये ऐस्‍टरॉइड तबाही के गॉड कहे जाने वाले अपोफिस और साल के सबसे बड़े ऐस्‍टरॉइड अभी हाल ही धरती के करीब से गुजरा था। वहीं अब विशाल ऐस्‍टरॉइड 9 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से आसमान से धरती की ओर बढ़ रहा है। इसका आकार बहुत बड़ा है इसलिए नासा के वैज्ञानिक ऐस्‍टरॉइड 2021 AF8 पर लगातार अपनी नजर गड़ाए हुए हैं।


जानें किस तारीख को‍ धरती के करीब से गुजरेगा ये ऐस्‍टरॉइड अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार ये विशालकाय ऐस्‍टरॉइड 4 मई को धरती के पास से गुजरेगा। नासा के वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार स्‍टरॉइड का आकार 260 से लेकर 580 मीटर है। जिसका पता वैज्ञानिकों ने मार्च माह में लगाया था। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार अंतरिक्ष में पृथ्‍वी के पास से गुजरे अन्‍य बड़े ऐस्‍टरॉइड की तुलना में यह 2021 AF8 साइज में छोटा है लेकिन खतरनाक है।


वैज्ञानिकों ने इस ऐस्‍टरॉइड के बारे में बताई ये बात नासा ने बताया कि 2021 AF8 ऐस्‍टरॉइड 9 किमी प्रति सेकंड की स्‍पीड से पृथ्‍वी के पास से गुजरेगा। उनका ये अनुमान लगाया है कि ये उल्‍कापिंड करीब 34 लाख किलोमीटर की दूरी से सुरक्षित गुजर सकता है। वैज्ञानिकों के इस अनुमान के बावजूद अंतरिक्ष विज्ञानी अपोलो श्रेणी इस पर पल-पल नजर रख रहा है क्योंकि इस ऐस्‍टरॉइड को नासा ने संभावित खतरनाक ऐस्‍टरॉइड की श्रेणी में रखा है। NASA का Sentry सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है। बता दें नासा 140 मीटर चौड़ी हर उस चीज को खतरनाक ऐस्टरॉइड की श्रेणी में रखता है कि जिसके निकट भविष्य में पृथ्वी के 50 लाख मील के दायरे में आने की संभावना है। भले चाले दूरी ज्यादा हो लेकिन ऐस्टरॉइड के रास्ते में मामूली बदलाव उसे पृथ्वी की तरफ मोड़ सकता है।


जानें क्या होते हैं ऐस्‍टरॉइड ऐस्टरॉइड्स ऐसी चट्टानें होती हैं जो अन्‍य ग्रहों की तरह सूरज का चक्‍कर काटते रहते हैं लेकिन इनका आकार ग्रहों की अपेक्षा छोटा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे सोलर सिस्टम में पाए जाने वाले ये ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह, बृहस्पति और जूपिटर की कक्षा के उल्‍कापिंड सेक्‍शन में पाए जाते हैं। उल्‍कापिंड दूसरे ग्रहों की ग्रहों में भी घूमते हैं। ग्रह के साथ ये भी सूरज के चक्‍कर काटते रहते हैं। मजे की बात ये है कि किसी भी उल्‍कापिंड का आकार एक जैसा नहीं होता इसके पीछे कारण है कि 4.5 अरब साल पहले जब सोलर सिस्‍टम बना तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार न ले पाने की वजह से पीछे रह गए वो चट्टानों जैसे दिखने वाले ऐस्‍टरॉइड में बदल गए यही कारण है कि इनका सेप ग्रहों की तरह गोल न होकर उबड़-खाबड़ चट्टान की तरह होता है।


बड़े कीमती होते हैं ये एस्‍टरॉयड सामान्‍य तौर पर एस्टरॉयड और उल्का पिंड को धरती के लिए खतरनाक माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। कई एस्टेरॉयड और उल्का पिंड के टुकड़े करोड़ों में बिकते हैं।कुछ साल पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक एस्टेरॉयड की खोज की थी, जिसका नाम '16 साइकी' है। कहा जाता है कि ये एस्टेरॉयड आयरन और बेशकीमती धातुओं से भरा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक इसकी कीमत 10 हजार क्वॉड्रिल्यन डॉलर (10,000,000,000,000,000,000 डॉलर) होगी, जबकि पूरे धरती की अर्थव्यवस्था 73700 अरब डॉलर की है।

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